
ब्यूरो आफ इंडिया – (एम सलीम खान ब्यूरो) संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारत में बढ़ते मंदिर -मस्जिद विवाद को लेकर बही बातें कही हैं, उन्होंने विकसित भारत में बढ़ते मंदिर -मस्जिद के विवाद को लेकर गहरी चिंता जताई है, संभल जामा मस्जिद की जगह प्राचीन वक्त में मंदिर होने के दावे को लेकर तमाम तरह की बातों की जा रही है, सर्वोच्च न्यायालय ने इस पूरे मामले में आगे बढ़ते हुए सुनवाई करने वाली अदालत के द्वारा दिए गए सर्वे के आदेश पर उस वक्त तक रोक लगा दी है।
जब तक इस मामले में उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश इस मामले में कोई आदेश नहीं देता है, वहीं दूसरी तरफ अजमेर की एक नीचली अदालत के द्वारा एक दायर याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार होने से धार्मिक तनाव पैदा होने का भय है, इस दायर याचिका में महान सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह शरीफ के नीचे शिव मंदिर होने का दावा पेश किया गया है,यह याचिका हिंदू सेना के नाम से एक दल संचालित करने वाले विष्णु गुप्ता ने दायर की है, विष्णु गुप्ता ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आर एस एस के प्रमुख मोहन भागवत की बातों पर ध्यान दिया होता तो यह भय पैदा नहीं होता है।
मोहन भागवत ने जून साल 2022 में साफ तौर पर काम था कि हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग ढूंढने और हर दिन नये विवाद को शुरू करने की क्या जरूरत है, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि अब ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा चल रहा है एक इतिहास है और हम इसे नहीं बदल सकते हैं, इतिहास हमने नहीं बनाया है और न ही आज के हिंदुओं और मुसलमानो ने,यह उस वक्त हुआ जब भारत में इस्लाम आया और आक्रमणकारी भी आए।
उस वक्त मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया और ऐसे हजारों मंदिर है हिंदू मुस्लिम दोनों ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर अजमेर के मुद्दे को कुछ चरमपंथी संगठनों ने उठाया है, इस मामले में उनके दावे हास्यास्पद है क्योंकि वे लोग सूफी विचारधारा के इतिहास और महत्व को नहीं समझते हैं, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पवित्र है और उनकी दरगाह पर हिंदू द्वारा उतना ही सम्मान दिया जाता है जितना मुसलमानों के द्वारा दिया जाता है, दरगाह के बाजार में करीब 75 प्रतिशत दुकानें और होटल के स्वामी हिंदू ही है।

जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी प्रधानमंत्री उर्स के दौरान दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं, बाबरी मस्जिद, ज्ञानवापी मस्जिद और संभल के बाद अब अजमेर दरगाह को लेकर हो रहे यह एक नया विवाद हैं, बाबरी मस्जिद ज्ञानवापी और संभल के मामले में मस्जिद को लेकर विवाद था लेकिन अब यह विवाद जाने माने सूफी संत की दरगाह को लेकर हो रहा है मस्जिद मुसलमान के लिए इबादत की जगह है, जहां अल्लाह की बारगाह में सजदा करते हैं, जबकि दरगाह वह स्थान है जहां सम्मानित सूफी संतों की समाधियां बनाईं जाती है।
ऐसा पहली बार हुआ है कि सूफ़ी संतों की दरगाह को खतरा हुआ हो, सूफीवाद को कट्टर धार्मिक विचारधारा के खिलाफ माना जाता है, सूफीवाद इस्लामी विचार का ऐसा गहरा रुप है जो शिया सुन्नी विवाद राजनीतिक सीमाओं आर्थिक वर्गों भाषाओं और धर्मों से दूर हैं, इनके बढ़ते प्रभाव की वजह से सूफी संतों की दरगाहों पर हमले होते रहे हैं, वहाबी देवबंदी सलाफी विचारधारा वाले लोग संतों और सूफी प्रथाओं को शिर्क मानते हैं, उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान और ईरान से लेकर तुर्की और पाकिस्तान तक सूफी सम्प्रदाय के खिलाफ अभी भी भेदभाव और हिंसा होती है।
भारत में भी देवबंदी सम्प्रदाय के लोग दरगाह पर जाने वालों के खिलाफ अनर्गल बातें करते हैं और उन्हें धार्मिक मान्यता भी देते हैं, भारत में अंतिम सूफी शहीद सरमद कशानी को औरंगजेब ने ईशनिंदा के आरोप में फांसी पर चढ़ा दिया था,सरमद कशानी को आज भी संत के रूप में सम्मानित किया जाता है और जामा मस्जिद के पास समाधि बनाईं गई है,मुगल सम्राट अकबर भी 17 मर्तबा अजमेर आए थे, उनके पड़पोते दारा शिकोह का जन्म भी यही हुआ था,दारा शिकोह की सबसे बड़ी साहित्यिक विरासत सिर -ए अकबर या महान रहस्य थी और यह उपनिषदों का फारसी अनुवाद है, उनकी किताब मजमा उल बहरीन या दो समुद्रों का संगम है।
जिसने सूफीवाद और वेदांत के बीच समानता की खोज की थी और बताया था कि इन दोनों में कोई मौलिक अंतर नहीं है, संघ प्रमुख मोहन भागवत के राय मशविरे को गंभीरता से सुनने के आलावा विष्णु गुप्ता जैसे लोग दारा शिकोह के दृष्टिकोण से यह बात भी सीख सकते हैं कि इस्लाम और हिन्दू धर्म के बीच मूल रूप से दोनों धर्म एक ही है, भारत आज समावेशी विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है, धार्मिक संघर्ष सामाजिक प्रगति और आर्थिक विकास के विचार के पूरी तरह खिलाफ है इस तरह की कट्टरपंथी बातों को रोकना बेहद जरूरी है, इससे पहले कि यह हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए खतरा बने,कल के भारत को आज के भारत को अस्थिर करने की कोई अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को हमें यह भी बताने की जरूरत है कि एक दौर में भारत में सभी वर्गों, धर्म के लोगों ने भारत को आगे बढ़ाने में सर्व धर्म समभाव से सीख लेते हुए भारत को सोने की चिड़िया का स्वरूप भी दिया था।

