आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट की जज ने कहा राज्यपाल का पद गंभीर संविधान के मुताबिक काम करें

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एम सलीम खान प्रभारी संपादक

पीटीआई हैदराबाद – न्यायधीश नागरत्ना ने कहा कि मुझे राज्यपाल कार्यालय से अपील करनी चाहिए कि यह एक संवैधानिक पद हैं, राज्यपालों को संविधान के मुताबिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, जिससे इस तरह के मुकदमेबाजी अदालत में कम हो, राज्यपालों को किसी काम को करने या नहीं करने के लिए कहना काफी शर्मनाक है, राज्यपालों को संविधान के मुताबिक काम करना चाहिए।

शनिवार को सुप्रीम कोर्ट की न्यायधीश नागरत्ना ने राज्यपालों को लेकर यह बड़ी बातें कही हैं, उन्होंने हैदराबाद के एन ए एल एस ए आर यूनिवर्सिटी ऑफ ला में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि राज्यपालों को संविधान के मुताबिक काम करना चाहिए।

न्यायधीश बीवी नागरत्ना ने कहा कि हाल की प्रवृत्ति यह रही है कि राज्य के राज्यपाल या तो विधेयकों को मंजूरी देने में चूक या उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य कार्यों के कारण मुकदमेबाजी का मुद्दा बन रहें हैं, किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को संवैधानिक अदालतों के समक्ष विचारार्थ लाना संविधान के मुताबिक एक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है।

उन्होंने कहा कि हालांकि इसे राज्यपाल पद कहा जाता है,यह एक गंभीर संवैधानिक पद हैं और राज्यपालों को संविधान के मुताबिक कार्य करना चाहिए, ताकि इस तरह की मुकदमेबाजी कम कम हो, राज्यपालों के लिए किसी कार्य को करने या नहीं करने के लिए कहा जाना काफी शर्मनाक है,मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि उन्हें संविधान के मुताबिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए कहा जाएं।

न्यायधीश बीवी नागरत्ना की यह टिप्पणी ऐसे समय में बड़ी महत्वपूर्ण है,जब पंजाब, तेलंगाना तमिलनाडु और केरल की राज्य सरकारों ने विधानसभाओं द्वारा पारित पर सहमति देने से संबंधित राज्यपाल के इन्कार को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिकाएं दायर की गई है।

बीते पिछले साल तेलंगाना राज्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि राज्यपाल को जल्द से जल्द बिल वापस करना ऐ, पंजाब राज्य द्वारा दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने एक विस्तृत फैसला दिया था कि राज्यपाल सहमति दिए बिना किसी विधेयक पर बैठकर वीटों नहीं कर सकते।

सुप्रीम कोर्ट ने बिलों पर कार्रवाई में देरी के लिए केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों की भी कड़ी आलोचना की है, न्यायालय ने एक बिंदु पर यहां तक पूंछा कि राज्यों द्वारा न्यायलयों में जाने के बाद ही राज्यपाल विधेयकों पर कार्रवाई क्यों करते हैं, पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने विधायक के पोनमुडी को फिर से मंत्री के रूप में शामिल करने से इंकार करने पर तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि पर नाराजगी व्यक्त की थी,भले ही सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया था।

संविधान सम्मेलन में उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल का भी जिक्र किया, उन्होंने कहा कि उनके पास फ्लोर टेस्ट की घोषणा करने के लिए पर्याप्त सामग्री ही नहीं थी, उन्होंने कहा कि किसी राज्य के राज्यपाल के कार्यों या चूक को अदालतों के समक्ष विचार के लिए लाना कानून के मुताबिक स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है।

जज बीवी नागरत्ना ने इसके अलावा नोटबदी पर असहमति जानते का कारण भी बताया, उन्होंने कहा कि मैंने केंद्र सरकार के इस कदम के खिलाफ असहमति जताई, क्योंकि मुझे लगा प्रतिबंध से भारत सरकार ने कथित तौर पर काले धन के खिलाफ कार्रवाई की, सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया,जो कुल मुद्रा का 86 प्रतिशत था,98 प्रतिशत पुराने नोट बैंकों में वापस भी गए,सारा बेशुमार पैसा वापस बैंकों में आ गया,यह बेहिसाब नगदी के हिसाब किताब का अच्छा तरीका है, लेकिन सरकार के इस फैसले से आम जनता बहुत अधिक परेशान हो गयी,जिस वजह से मुझे असहमति जतानी पड़ी।


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