जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद को किया याद, आज के ही दिन हंसते हंसते चूमा था फांसी का फंदा

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एम सलीम खान ब्यूरो

देश की आजादी में अहम रोल निभाया केसरी चंद ने जंग ए आजादी के वीर सिपाही शहीद केसरी चंद ने देश की खातिर अग्रेंजी हकूमत से लड़ते हुए फांसी का फंदा चूमा लिया था। वीर केसरी चंद ने जौनसार बावर क्षेत्र के क्यावा गांव में एक नवम्बर 1920 को एक साधारण से परिवार में जन्म लिया था, जब ये मात्र छह साल के थे तो उनकी मां चल बसी। पिता शिव दत्त ने केसरी चंद को स्थानीय हाईस्कूल में शिक्षा दिलाई। आगे की पढ़ाई के लिए केसरी चंद देहरादून के डीएवी इंटर कालेज पहुंच गए, लेकिन 10 अप्रैल 1941 को बीच में ही पढ़ाई छोड़कर वह रायल इडिया आर्मी सर्विस कोर में नायब सूबेदार के पद पर भर्ती हो गए।

इन्हीं दिनों नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज का गठन हुआ। जिसमें देश को आजाद कराने का सपना लिए केसरी चंद भी आजादी के दीवानों की टोली में शामिल हो गए। वर्ष 1944 में आजाद हिंद फौज वर्मा भारत सीमा से होते हुए मणिपुर की राजधानी इम्फाल पहुंची, जहां 28 जून 1944 को अग्रेंजों ने युद्ध के दौरान केसरी चंद को बंदी बना लिया। अक्टूबर में दिल्ली की फिरंगी सरकार ने इस स्वतंत्रता सेनानी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। 3 मई 1945 को देश के वीर सिपाही केसरी चंद ने आजादी की खातिर हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया था।


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