गरीब का झलका दर्द, कहा जिंदगी गुजारने के लिए सिर्फ पांच किलो राशन नहीं बल्कि मजबूत रोज़गार की जरूरत है, तभी होगा हम जैसे गरीबों का गुज़ारा

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एम सलीम खान/शबाना आजमी

देश में हर पांच सालों बाद होने वाले सबसे बड़े लोकतंत्र लोकसभा चुनाव को लेकर एक मज़दूर से पुछा गया एक सवाल इतना भारी पड़ जायेगा हमने कभी सोचा भी नहीं था,पूछे गए सवाल के जवाब में एक 65 वर्षीय मजदूर बुजुर्ग ने ऐसा कुछ कहा कि आंखों में नमी आ गई, और उसके सवालों का जवाब हमारे पास नहीं था, बल्कि हमारे चंद सवालों के जवाब में उन्होंने इतना कुछ कह दिया, गरीबों के कल्याण का ढिंढोरा पीटने वाली सरकारों की पोल खुल कर सामने आ गई, वहां मौजूद हर शख्स उस बुजुर्ग के सवालों और उनके द्वारा दिए जा रहे जवाबों पर कभी तालियां बजाकर ओर कभी हौसला अफजाई करते हुए उनका समर्थन कर रहे थे।

सुबह के सात बज रहे थे,एक मजदूर अड्डे पर एक 65 वर्षीय बुजुर्ग इंतेज़ार कर रहें थे कि कोई आए और उन्हें दिहाड़ी पर काम करने के लिए अपने साथ ले जाएं, इसी दौरान हमारी नजर उन पर पड़ी तो बिखरे हुए बाल,बदन पर मामूली कपड़े की शर्ट और जगह-जगह से फटी हुई पैंट और आंखों मोटे-मोटे लैंस का मामूली चश्मा लगाए हुए कांपते हाथ और सर देख कर लोकसभा चुनाव पर उसकी राय जानने का मन बनाते हुए जब उनके पास पहुंचे तो पहले तो वो समझे कोई काम होगा, लेकिन जब उन्हें बताया गया कि बाबा आम चुनाव होने जा रहे हैं और आप इन चुनावों पर कुछ कहना चाहते हैं तो, उन्होंने पहले तो इंकार कर दिया, फिर ज्यादा कहने पर हम उनके पास सड़क पर बने चबूतरे पर बैठ गए और उनसे एक और आखिरी सवाल किया तो उन्होंने एक सवाल के करीब 100 जवाब दे दिए, जिन्हें सुनकर आंखें नम हो गई।

गाजियाबाद के रहने वाले किशन सिंह की उम्र 65 साल है, उनके परिवार में पत्नी गंगा देवी और दो बेटे विकास और रघु है,इनके अलावा उनकी एक बेटी भी है रजनी है,बेटो की शादी होने के बाद उन्होंने दिल्ली में नौकरी के साथ ही वहीं अपने परिवार के साथ रहना शुरू कर दिया, और बुज़ुर्ग मां बाप और बहन को भगवान के सहारे अकेले छोड़ दिया, बमुश्किल किशन सिंह ने आसपास और एक समाजिक संगठन की मदद से अपनी बेटी की शादी हापुड़ के रहने वाले ज्ञान चंद्र के बेटे सूरज चंद्र के साथ कर दी,अब उनके सामने अपना और अपनी पत्नी का पालन-पोषण करने की बड़ी जिम्मेदारी थी, उन्होंने इसके लिए अपने बेटो से मदद मांगी लेकिन दिल्ली में रहकर मांगे खर्चों का हवाला देते हुए उन्होंने साफ़ तौर पर इंकार कर, जिसके बाद उन्होंने करीब एक साल तक एक स्कूल में बतौर चपरासी के तौर पर काम किया और एक साल बाद स्कूल से उन्हें हटा दिया गया, जिसके बाद उन्होंने कमर तोड महंगाई से मुकाबला करने के लिए दैनिक दिहाड़ी मजदूर करना शुरू कर दी।

वृद्धा पेंशन के लिए छह महीने भटकते रहे

बुजुर्ग किशन सिंह ने बताया कि एक जन प्रतिनिधि की राय पर उन्होंने अपनी और पत्नी के वृद्धावस्था पेंशन का आवेदन किया, लेकिन जटिल प्रक्रियाओं के कारण थक हार कर उन्होंने पेंशन लेने का इरादा छोड़ दिया, उन्होंने बताया कि दोनों के आवेदन को लेकर उन्होंने तहसीलदार के कार्यलय से लेकर आला अधिकारियों के चक्कर लगाएं लेकिन उन्हें निराशा मिली,जब उनसे पूछा गया कि गरीब अन्य योजना के तहत गरीबों को हर महीने मुफ्त राशन मुहैया कराया जाता है,बस यही उन्होंने हमें घेर लिया, उन्होंने कहा कि आप इस बात से सहमत हैं कि देश के लाखों करोड़ों गरीबों के पास इस योजना से संबंधित राशन कार्ड है, उन्होंने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं है, गरीबों के हिस्से का राशन ऐसे लोग खा रहे हैं जिन्हें भगवान ने सबकुछ दिया है, हमारे पास किसी भी तरह का कोई राशन कार्ड नहीं है,हा मोहल्ले के पार्षद ने आवेदन किया था और कुछ कागजों पर अंगूठे भी लगाए थे,जिसे करीब तीन साल गुजर चुके हैं लेकिन आज तक राशन कार्ड बन पाया।

कहा जो गरीब था और गरीब हो गया

किशन सिंह ने रुहसा होते बहुत बड़ी बात कही उन्होंने कहा कि देश में जो गरीब था वो और करीब हो गया, हमारे नेता कहते हैं देश में गरीबी कम हुई है, मुझे आप एक ऐसा शख्स दिखाओ जिसने मजदूरी छोड़कर किसी तरह की बड़ी दुकान खोली हो, आपकी नजर में है ऐसा कोई शख्स तो मेरे सामने भी ले आए उसको, उन्होंने कहा कि जो अमीर था वो अमीर है और जो गरीब था वो गरीब ही अगर सब अमीर हो गये तो अमीरों के यहां नौकरी कोई नहीं करता, मैं दैनिक मजदूरी नहीं करता,आप पत्रकार नहीं होते।

पत्नी कक्षा छह तक तो किशन सिंह ने हाईस्कूल तक की है पढ़ाई

किशन सिंह हाईस्कूल तक शिक्षित है और उनकी पत्नी कक्षा छह तक शिक्षित हैं, लेकिन उनसे बातचीत के दौरान ऐसा लग रहा था कि हम किसी उच्च शिक्षित बुजुर्ग से बातचीत कर रहे हैं, उनकी बातचीत और हाव-भाव देखकर हैरत में पड़ गए, उन्होंने बताया कि उनसे उस दौर में पढ़ाई की जब महंगाई ऊच नीच जात पात का नामोनिशान नहीं था, सभी एक साथ बैठते और उठाते थे,एक दूसरे के तीज त्यौहार और सुख दुख में शिरकत करते थे,आज के दौर तरह नहीं की वो हिंदू हैं वे मुसलमान है ऐसी दकियानूसी सोच नहीं होती थी, उनसे पूछा गया कि इस दौर में इन बातों के लिए कौन जिम्मेदार है तो उन्होंने कहा इसके लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हम लोग हैं,जो चंद नेताओं की बातों में आकर आपसी सद्भाव भाईचारे को कायम रखने में नाकाम साबित हो गए हैं, इसके लिए मैं खुद को और आपको इसका जिम्मेदार मनाता हूं, आखिर क्यों हम इन लोगों की बातों में आकर एक दूसरे के खिलाफ हो रहें,किशन सिंह ने इसी तरह की बहुत सी बड़ी बड़ी बाते हमसे की जिनका विवरण खबर के तौर पर किया जाना मुश्किल था, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि देश को आज किशन सिंह जैसे लोगों की बेहद जरूरत है, ताकि देश से भेदभाव को समाप्त कर फिर एक बार सर्व धर्म समभाव की मजबूत बुनियाद को रखा जाएं।


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