ब्यूरो सिटी न्यूज़ उत्तराखंड
लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतरधार्मिक दंपत्तियों की सुरक्षा से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर प्रेमी जोड़ा 48 घंटे के अंदर उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता के तहत अपना पंजीकरण करा लेता है तो उसे अनिवार्य रूप से सुरक्षा दी जाए।
विस्तार_
उत्तराखंड – लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतरधार्मिक दंपत्तियों की सुरक्षा से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया है। कि अगर प्रेमी जोड़ा 48 घंटे के अंदर उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता के तहत अपना पंजीकरण करा लेता है तो उसे अनिवार्य रूप से सुरक्षा दी जाए।
लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे अंतरधार्मिक दंपत्तियों की सुरक्षा से जुड़े एक मामले में हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि अगर प्रेमी जोड़ा 48 घंटे के अंदर उत्तराखंड के समान नागरिक संहिता के तहत अपना पंजीकरण करा लेता है तो उसे अनिवार्य रूप से सुरक्षा दी जाए।
इस मामले में शासकीय अधिवक्ता ने स्पष्ट किया है कि मामले की पैरवी कर रहे सरकारी अधिवक्ता को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता की अधिसूचना जारी नहीं हुई है। यह गलतफहमी थी। संशोधित आदेश जारी करने के लिए आदेश से यूसीसी से जुड़ा हिस्सा हटाया जाएगा। इस संबंध में शनिवार को रिकॉल एप्लीकेशन दाखिल की जाएगी।
हाईकोर्ट ने यह आदेश 26 वर्षीय हिंदू महिला और 21 वर्षीय मुस्लिम युवक की ओर से सुरक्षा के लिए दायर याचिका पर दिया है। युगल लिव-इन में रह रहा था। याचिका में कहा गया कि दोनों ही वयस्क हैं, अलग-अलग धर्मों के हैं। इसके चलते परिजनों ने उन्हें धमकाया है। शासकीय अधिवक्ता ने उत्तराखंड यूसीसी की धारा 378 (1) का हवाला देते हुए कहा कि राज्य में लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे भागीदारों के लिए लिव-इन रिलेशनशिप का विवरण रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा, भले ही वे उत्तराखंड में कहीं भी निवास करते हों।
यदि लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे भागीदार ऐसे संबंध की शुरुआत से एक माह के भीतर अपने संबंध को पंजीकृत नहीं कराते हैं, तो वे दंड के भागी होंगे। वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने याचिका का निस्तारण करते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता उक्त अधिनियम के तहत 48 घंटे के भीतर पंजीकरण के लिए आवेदन करते हैं, तो एसएचओ याचिकाकर्ताओं को छह सप्ताह तक पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करेंगे।