नए भारत के वास्ते भगत सिंह और आंबेडकर के रास्ते – आइसा

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अंबेडकर जयंती पर आइसा ने अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाने का लिया संकल्प

लालकुआँ – आज 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती पर छात्र संगठन आइसा/AISA द्वारा कार रोड बिंदुखत्ता में बैठक कर संविधान निर्माता डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी के विचारों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया। बैठक की शुरुआत डॉ भीम राव अंबेडकर को द्धांजलि सुमन अर्पित करते हुए हुए।

बैठक को संबोधित करते हुए आइसा नैनीताल जिलाध्यक्ष धीरज कुमार ने कहा कि छात्र संगठन आइसा शहीदे आजम भगत सिंह और बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर के आदर्शों और उनके क्रांतिकारी, प्रगतिशील विचारों पर चलने वाला छात्र संगठन है। आज बाबा साहब को याद करने का दिन है। अपने जीवन में डा.अम्बेडकर ने बहुत सारी भूमिकाएं अदा की.वे संगठक थे,प्रकाशक-सम्पादक थे।

राजनीतिक नेता,सांसद,मंत्री रहे.लेकिन इन सब भूमिकाओं के मूल में एक साम्यता है कि उन्होंने जो भी काम किया,उसमें स्वयं के हित के बजाय उत्पीड़ित,दमित,दलित लोगों की आवाज को आगे बढाने के लिए किया.उन्होंने संगठन बनाये,पार्टी बनाई-बहिष्कृत हितकारिणी सभा ,इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी और फिर शिड्यूल कास्ट फेडरेशन.हर बार लक्ष्य एक ही था कि हाशिये के स्वरों को मुख्यधारा का स्वर बनाया जाए.जीवन पर्यंत भूमिकाएं बदलती रही पर लक्ष्य हमेशा एक ही रहा.

वे सिर्फ दलितों के नेता नहीं थे बल्कि समाज के हर उत्पीड़ित हिस्से की आवाज़ थे.इसीलिए बम्बई असेंबली में मजदूरों के हड़ताल के अधिकार के पक्ष में मुखर स्वर थे.उनकी पार्टी-इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी के एजेंडे में ऐसे आर्थिक तंत्र को सुधारने या उलटने की बात थी,जो लोगों के किसी वर्ग के प्रति अन्यायपूर्ण हो.जमींदारों के जुल्म से बटाईदारों को बचाने की बात भी इस कार्यक्रम में थी।

महिला अधिकारों वाले हिन्दू कोड बिल को पास न कराने के मसले पर तो अम्बेडकर ने मंत्री पद से ही त्याग पत्र दे दिया था.इस प्रकार, हर तरह की गैरबराबरी के खिलाफ वे थे.लेकिन निश्चित ही जातीय भेदभाव और उत्पीड़न(जिसे वे खुद भी भुगत चुके थे),भारतीय समाज में मौजूद उत्पीड़न का सर्वाधिक मारक रूप था(है),इसलिए उसकी समाप्ति के लिए वे जीवन पर्यंत लड़ते रहे।

लालकुआं नगर संयोजक विशाल गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज के दौर के कई सबक, अम्बेडकर के लिखे में तलाशे जा सकते हैं.आज राजनीति का ऐसा स्वरूप खड़ा कर दिया गया है,जिसमें नेता, मनुष्य नहीं अराध्य है.उस पर किसी तरह का सवाल उठाना,उसके भक्तों द्वारा पाप की श्रेणी में गिना जा रहा है.अब देखिये, अम्बेडकर का इस बारे में क्या मत है.वे कहते हैं- “धर्म में भक्ति(नायक पूजा) हो सकता है कि आत्मा के मोक्ष का मार्ग हो,लेकिन राजनीति में भक्ति निश्चित ही पतन और निर्णायक तौर पर तानाशाही की ओर ले जाने वाला रास्ता है.” अम्बेडकर के लिखे,इस वाक्य में राजनीति के इस ‘भक्तिकाल’ की मंजिल देखी जा सकती है।

कानून मंत्री के रूप में संसद से हिन्दू कोड बिल पास न करवा पाने के चलते अम्बेडकर ने इस्तीफ़ा दे दिया.इस मसले पर उन्होंने कहा “……..वर्ग और वर्ग के बीच भेद,लिंग और लिंग के बीच भेद,जो हिन्दू समाज की आत्मा है,उसे अनछुआ छोड़ दिया जाए और आर्थिक समस्याओं से जुड़े कानून पास करते जाएँ तो यह हमारे संविधान का मखौल उड़ाना और गोबर के ढेर पर महल खड़ा करना है.”आज देखें तो लगता है कि वह गोबर का ढेर,महल से भी बड़ा हो गया है और फैलता ही जा रहा है।

वह देश जिसकी परिकल्पना भारत के संविधान की प्रस्तावना में है- “संप्रभु, समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष,जनतांत्रिक गणराज्य”,वह भी धूरी-धूसरित होती प्रतीत हो रही है.इसलिए एक आधुनिक देश की परिकल्पना को साकार करने की चुनौती, अम्बेडकर को याद करते हुए हमारे सामने हैं। इस दौरान नैनीताल जिलाध्यक्ष धीरज कुमार, कपिल वर्मा, विशाल गौतम, पूनम, सुनीता, करन, नरेश, दीपक, नेहा कोहली, आदि अन्य छात्र छात्राएं मौजूद रहे।


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