कांग्रेस की कमान संभालते ही गणेश गोदियाल के सामने बग़ावत का पहाड़ – पढ़े बड़ी ख़बर

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देहरादून – (एम सलीम खान संवाददाता) उत्तराखंड कांग्रेस कमेटी के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल आज से औपचारिक रूप से कार्यभार संभाल रहे हैं। मगर यह जिम्मेदारी उनके लिए आसान नहीं दिख रही। पूर्व अध्यक्ष करन माहरा जिन चुनौतियों से उभर नहीं पाए, उन्हीं चुनौतियों का कहीं बड़ा रूप अब गोदियाल के सामने खड़ा है।

शीर्ष नेतृत्व ने कांग्रेस संगठन में बड़े बदलाव करते हुए डूबते जहाज की कमान गणेश गोदियाल को सौंपी है, लेकिन इस जहाज को किनारे लगाने में उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

ऊधम सिंह नगर में बग़ावत चरम पर

सबसे मुश्किल चुनौती गोदियाल को ऊधम सिंह नगर में मिल रही है, जहां संगठन में फैली गुटबाज़ी खुले विद्रोह में बदल गई है। शीर्ष नेतृत्व ने जिला कांग्रेस कमेटी की बागडोर एक बार फिर हिमांशु गावा को सौंप दी है।

कार्यकारिणी गठन के दौरान वरिष्ठ नेता व किच्छा विधायक तिलक राज बेहड़ को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया, जिसके बाद जिले में इस्तीफों की बाढ़ आ गई।

हिमांशु गावा की पुनर्नियुक्ति की खबर मिलते ही नगर निगम के कई कांग्रेसी पार्षदों ने प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इनमें परवेज़ कुरैशी, सरदार इंद्रजीत सिंह, सौरभ राज बेहड़, मधु शर्मा, पूर्व पार्षद सौरभ शर्मा सहित कई नाम शामिल हैं।

बंगाली समाज भी खुलकर सामने आया

कांग्रेस से जुड़े बंगाली समाज के प्रतिनिधियों ने भी खुलकर विरोध जताया है। वरिष्ठ नेता परिमल राय ने पार्टी पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस लगातार बंगाली समाज की अनदेखी कर रही है और यह रवैया अब असहनीय हो चुका है।

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गावा की पुरानी कार्यप्रणाली पर सवाल

गावा जब पहले जिला अध्यक्ष थे, तभी संगठन की पकड़ कमजोर पड़ने लगी थी। लोकसभा चुनाव से लेकर निकाय चुनाव तक कांग्रेस को करारी हार मिली। आरोप यह भी लगा कि गावा नेतृत्व चुनावी मैदान में सक्रिय नहीं रहे और ‘एसी कोच वाली राजनीति’ करते रहे, जबकि कार्यकर्ता मैदान में जूझते रहे।

अंदरखाने कांग्रेस की बी-टीम भी सक्रिय बताई जा रही है, जिसने सत्ता पक्ष से नजदीकियां बढ़ाते हुए पार्टी के चुनाव प्रचार से दूरी बना ली। नतीजा—कांग्रेस लगातार पस्त होती चली गई।

गोदियाल के लिए चुनौती भरा कार्यकाल

अब प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद गणेश गोदियाल को वही समस्याएँ विरासत में मिली हैं जिनसे माहरा नहीं निपट पाए। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए और भी कठिन हो सकते हैं, यदि संगठनात्मक कलह पर तुरंत काबू नहीं पाया गया।


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