काकोरी रेलवे लूट की पूरी दास्तां जिसने गौरी सरकार को हिला कर रख दिया।

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8 अगस्त 1925 को काकोरी गये आठ वीर सपूतों ने ट्रेन लूटने की नाकाम कोशिश की

संवाददाता – एम सलीम खान की कलम से…..

कहानी नहीं इतिहास रचा वीर सपूतों ने साल 1925 आते आते आजादी की लड़ाई लड रहे क्रांतिकारियों की माली हालत बेहद नाज़ुक हो गई थी और आजादी के मतवाले एक एक पाईं के मोहताज हो गए थे, क्रांतिकारी दिवानो की हालत गंभीर हो गई थी।

किसी के पास साबुन कपड़े तक नहीं थे उन पर काफी कर्ज हो चुका एक तरफ कर्ज उतारने की फ्रिक तो दूसरी तरफ आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने की चिंता ने उन्हें झकझोर कर रख दिया था लोगों से जबरन पैसे वसूलने के अलावा उनके पास कोई और चारा बाकी नहीं था उन्होंने महसूस किया कि अगर लूटना है तो फिर सरकारी खजाने को क्यों न लूटा जाए,,राम प्रसाद बिस्मिल अपनी आत्मकथा लिखते हैं कि उन्होंने गौर किया था कि गार्ड के डिब्बे में लोहे के संदूक में टैक्स का पैसा होता है उन्होंने लिखा है एक दिन मैंने लखनऊ रेलवे स्टेशन पर देखा कि गार्ड के डिब्बे में कुली लोहे के संदूक को उतार रहे हैं मैंने नोट किया कि उसमें न तो जंजीर थी और न ही ताला लगा हुआ था।

मैंने उसी दिन समय तय किया कि मैंने इसी पर हाथ साफ करना है, ट्रेन लूटने का पहला प्रयास नाकाम हो गया था इस मिशन के लिए बिस्मिल ने नौ क्रांतिकारियों को चुना था जिसमें राजेन्द्र लाहिड़ी, रोशन सिंह,सचीद् बख्शी अशफाक उल्ला खां मुकुंदी लाल, मन्मथनाथ गुप्त, मुरारी शर्मा, बनवारी लाल और चन्द्र शेखर आजाद शामिल थे, सरकारी धन लूटने के लिए बिस्मिल ने काकोरी को चुना जो लखनऊ से आठ किलोमीटर दूर शाहजहांपुर रेलवे रुट पर एक छोटा सा स्टेशन था।

सभी लोग पहले एक टोही मिशन पर काकोरी गये आठ अगस्त 1925 को इन्होंने ट्रेन लूटने की नाकाम कोशिश की राम प्रसाद बिस्मिल लिखते हैं हम लोग लखनऊ की छेदीलाल धर्मशाला के अलग-अलग कमरों में ठहरे हुए थे पहले से तय समय पर हम लोग लखनऊ रेलवे स्टेशन पहुंचना शुरू हो गये जैसे ही हम प्लेटफार्म पर घुसे हमने देखा कि एक ट्रेन प्लेटफार्म छोड़ रही थी।

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हमने पूछा ये कौन सी ट्रेन है जिस पता चला कि ये 8, डाउन एक्सप्रेस ट्रेन है जिस पर हम सवार होने वाले थे हम सब 10 मिनट देरी स्टेशन पहुंचे थे हम निराश होकर धर्मशाला लौट आए, ट्रेन की चेन खींचने की योजना बनी छोड़कर पाडकास्ट आगे बढ़े कहानी जिंदगी की मशहूर हस्तियों की कहानी पूरी तसल्ली और इत्मीनान से आरिश सिद्दीकी और एस सलीम खान के साथ, अगले दिन यानी 9 अगस्त 1925 को ये सभी लोग फिर काकोरी के लिए रवाना हो गए उनके पास चार माउजर और रिल्वाल्रर थै, अशफाक उल्ला खां ने बिस्मिल को समझाने कि कोशिश की राम एक बार फिर सोच लो ये सही वक्त नहीं है।

चलों वापस लौट जाते हैं, बिस्मिल ने उन्हें जोर से डांटते हुए कहा अब कोई बात नहीं करेगा जब तक अशफाक उल्ला खां को लगा कि उसके नेता पर किसी बात का असर नहीं होगा उन्होंने एक अनुशासित सिपाही की तरह उनका साथ देने की ठान ली और दृढ़ संकल्प ले लिया,तय ये हुआ कि सभी लोग शाहजहांपुर से ट्रेन पर चढ़ेंगे और काकोरी के नजदीक पहले से तय की गई जगह जगह तक जाएंगे वहां गाड़ी की चेन खींची जाएगी और गार्ड के केबिन में पहुंच कर रुपए से भरें संदूक पर कब्जा कर लिया जाएगा।

राम प्रसाद बिस्मिल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं हमने ये तय किया था कि हम किसी को शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाएंगे मैं ट्रेन में ही ऐलान कर दूंगा कि हम यहां अवैध तरीके से हासिल किए गए सरकारी धन को हासिल करने आए हैं ये भी तय हुआ था कि हम में तीन लोग जिन्हें हथियार चलाने आते हैं।

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गार्ड के केबिन के पास खड़े होंगे और रुक रुक कर कर फायर करेंगे ताकि कोई केबिन तक पहुंचाने की हिम्मत न कर सके,तय जगह पर ट्रेन की चेन खींची गई चन्द्रशेखर आजाद ने सवाल किया अगर किसी वजह से चेन खींचने के बाद भी ट्रेन नहीं रूकी तो हम क्या करेंगे? इस स्थिति से निपटने के लिए बिस्मिल ने समाधान दिया हम गाड़ी में फस्रट और सेकेंड क्लास दोनों डिब्बों में चढ़ेंगे अगर एक बार चेन खींचने

से गाड़ी नहीं रुकती है तो दूसरी टीम अपने डिब्बे में चेन खीच कर गाड़ी को रूकवाना सुनिश्चित करेंगी,नौ अगस्त 1925 को सभी लोग शाहजहांपुर स्टेशन पहुंच गए ये सभी लोग स्टेशन पर अलग अलग दिशाओं से आए थे और उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा तक नहीं था, सबने रोजमर्रा के कपड़े पहने हुए थे और अपने हथियार कपड़ों के अंदर छिपा रखे थे उन्होंने डिब्बों में वो जगह ली जो चेन के बिल्कुल नजदीक थी ताकि उन्हें गाड़ी रुकने पर नीचे उतरने में ज्यादा वक्त न हो, रामप्रसाद बिस्मिल अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि जैसे ही ट्रेन ने सीटी दी और स्टेशन से आगे बढ़ाने लगी मैंने अपनी आंखें बंद की ओर गायत्री मंत्र का जाप करने लगा जैसे ही मुझे काकोरी स्टेशन का बोर्ड दिखाई दिया मेरी सांसें तेज़ हो गई।

और मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा अचानक जोर की आवाज हुई और गाड़ी उसी जगह पर रुक गई जहां हमने तय किया था, गाड़ी बिल्कुल सटीक जगह पर चेन खींची गई, बिस्मिल लिखते हैं मैंने तुरंत अपनी पिस्टल निकाल ली और चिल्ला कर कहा शांत रहिये डरने की कोई जरूरत नहीं है हम सिर्फ सरकार का धन लेने आए हैं जो हमारा है अगर आप अपनी सीट पर बैठे रहेंगे तो कोई नुक्सान नहीं होगादिया।

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जेवर खोने का बहाना बनाकर चेन खींची गई, गाड़ी रोकने से पहले एक ड्रामा हुआ अशफाक उल्ला खां राजेन्द्र लाहिड़ी और सुधीन्द्र बख्शी ने सेकेंड क्लास के टिकट खरीदें थे सुचीन्द् बख्शी अपनी किताब में मेरा क्रांतिकारी जीवन में लिखने हैं, मैंने अशफाक उल्ला खां से धीमे से पूछा मेरा जेवरों का डिब्बा कहा है? अशफाक उल्ला खां ने फौरन जवाब दिया अरे वो तो हम काकोरी में भूल आए, अशफाक उल्ला खां बोलते ही बख़्शी ने गाड़ी की चेन खींच दी राजेन्द्र लाहिड़ी ने भी दूसरी तरफ से चेन खींची, तीनों जल्दी से नीचे उतरे और काकोरी की तरफ चलने लगे थोड़ी दूर चलने पर गाड़ी का गार्ड दिखाई दिया।

उसने पूछा चेन किसने खींची है फिर उसने हमें वही रुकने का इशारा किया उन्होंने जवाब दिया कि ज़ेवर का डिब्बा काकोरी में छूट गया है हम उसे लेने जा रहे हैं बख्शी आगे लिखते हैं तब तक हमारे सारे साथी गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच चुके थे हमने पिस्तौल से हवा में फायर कर गोली चलना शुरू कर दिया तभी मैंने देखा कि गार्ड गाड़ी चलाने के लिए हरी बत्ती दिखा रहा है मैंने उसके सीने पर पिस्तौल लगा दी।

और उसके हाथ से बत्ती छीन ली उसने हाथ जोड़कर कहा मेरी जान बख्श दो मैंने उसे धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया, तो यह है 9 अगस्त 1925 की काकोरी की घटना उसके बाद वीर सपूतों क्रान्तिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत ने मुखबिरों का सहारा लेकर महान योद्धाओं को गिरफ्तार कर लिया और उन्होंने देश की आजादी के हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति देकर भारत की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई आइए मिलकर महान योद्धाओं को सलाम करते हैं।


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