समाजवादी पार्टी के उत्तराखण्ड प्रभारी हाजी अब्दुल मतीन सिद्दीक़ी ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि आज दिनांक 19/03/24 को छोटे भाई शहीद अब्दुल रऊफ़ सिद्दीकी जी की (26वीं) बरसी (पुण्य तिथि) है । अब्दुल रऊफ सिद्दीकी आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है अब्दुल रउफ सिद्दीकी एक ऐसा नाम है जिसने लोगों को अपनी लड़ाई लड़ना सिखाया अब्दुल रउफ सिद्दीकी एक ऐसा शक्स जिसने चाहे अमीर हो या गरीब दोनों के साथ हमदर्दी दिखाई आज भी कोई ऐसा मंच नहीं होगा जहां उनका एक क्रांतिकारी नेता के रूप में ज़िक्र नहीं होता होगा। अब्दुल रऊफ जिसने लोगों से अपने दिल के रिश्ते बनाए अब्दुल रउफ ही ऐसे पहले इंसान है ।जिन्होंने आंदोलन करा और करना सिखाया उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड में उनका बड़ा नाम था । हल्द्वानी शहर में वो हर किसी के दिल में थे । चाहे वो किसी भी धर्म का हो यदि आज भी लोगों को याद होगा अब्दुल रऊफ सिद्दीकी की कुर्बानियां जो उन्होंने इस हल्द्वानी शहर के लिए दी केवल उनकी उम्र 26 वर्ष की थी । जब उन्होंने 1993 पीपल्स कॉलेज में समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली थी और 1998 में 31 वर्ष की उम्र में अपना पहले लोक सभा इलेक्शन भी लड़ा जिसमें उन्होंने 88,000 वोट पाकर बड़े बड़े नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया, उनका केवल 5 वर्ष का राजनैतिक कैरियर था और इस 5 वर्ष मै वो इस हल्द्वानी को बहुत कुछ दे गए ।19 मार्च 1998 मै उनकी हत्या करदी गई आज भी शहीद अब्दुल रउफ सिद्दीकी जी के उपर गोली चलवाने व चलाने वाले सांसे लेने के बाद भी ज़मीदोज़ है और अब्दुल रउफ सिद्दीकी शहीद होने के बाद भी लोगों के दिलों में जिंदा है । मै ज़रूर मानता हूं अब्दुल रउफ सिद्दीकी ने अपने जीते जी ऐसे काम करे होंगे जिसका सिलाह ईश्वर (अल्लाहताला)आज उनको लोगों के दिलों मै जिंदा रखकर दे रहे है । केवल 4 गोलियां एक इंसान को तो मार सकती है पर उसके अच्छे कर्मो को कभी नहीं मार सकती है ।शहीद अब्दुल रउफ सिद्दीकी जी कहते थे एक ही जान है या तो अल्लाह लेले या फिर बंदा लेले आज हमारा परिवार उनकी विचार धारा के जरिए लोगों के लिए खड़ा है ताकि हल्द्वानी की आवाम को किसी भी तरह की परेशानी ना हो मै दावे के साथ कह सकता हूं ।और हर कोई जानता है ।अब्दुल रउफ सिद्दीकी जैसा नेता सदियों में एक आद ही पैदा होता है।उनके जैसा ना कोई था और ना ही कभी होगा, उत्तरप्रदेश की जनता तो उन्हें शेर कहती थी और व जिस पार्टी मै थे उस पार्टी के नेता भी कहते थे रउफ हमारा शेर है और किसी को नहीं पता था यही शेर एक दिन पूरे शहर को वीरान छोड़कर चला जाएगा। उनके लिए जितना लिखो उतना कम है ।वो आज भी नौजवानों के ideal है। अन्त में श्री सिद्दीक़ी ने कहा कि शहीद अब्दुल रउफ सिद्दीकी को असली श्रद्धांजलि (ख़िराजे अक़ीदत) यही होगी कि हम उनके पद चिन्हों पर चल कर उनके कार्यों को आगे बड़ाने के साथ साथ उनके अधूरे सपनों को साकार करें।अब्दुल रऊफ़ सिद्दीक़ी अमर रहे ।
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