अधिवक्ता तालिब हुसैन ने बताई रमजान की विशेषताए-पढ़े ख़बर

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इस्लाम मजहब में रमजान का महीना पाक और मुकद्दस होने की मुख्य वजह यह है कि कुरान के मुताबिक पैगंबर साहब को अल्लाह ने अपने पैगंबर के रूप में इसी महीने में चुना था। इसीलिए मुस्लिम समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के लिए रमजान का महीना काफी पवित्र होता है और सभी के लिए रोजे रखना अनिवार्य माना गया है।

हज़रत मोहम्मद के हिजरत करने यानी मक्का से मदीना जाने (622 ईस्वी) के दूसरे साल यानी साल 624 ईस्वी में इस्लाम में रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने को फ़र्ज़ अथवा अनिवार्य क़रार दिया गया था. उसके बाद से ही पूरी दुनिया में बिना किसी बदलाव के रोज़ा रखा जाता रहा है.

रमजान के दौरान जो इस्लाम धर्म में यकीन रखने वाले लोग रोजा रखते हैं. इस दौरान सुबह की नमाज के बाद सूर्यास्त तक कुछ खाना और पीना नहीं होता है. रमजान के दौरान रोजेदार नमाज अदा करने के साथ ही, कुरआन शरीफ की तिलावत करते हैं, जकात (दान) देते हैं और ऐसे काम करने की कोशिश की जाती है, जिससे सवाब (पुण्य) मिले।

अल्लाह तआला फरमाता है के रोजेदार अपना खाना पीना और अपनी ख्वाहिश, मेरे लिए छोड़ देता है तो रोजा मेरे ही लिए। और मैं इसका बदला दूंगा और हर नेकी का सवाब 70 गुना मिलता है, लेकिन रोजे का सवाब इससे कहीं ज्यादा मिलेगा।

इस्लाम मजहब में रमजान का महीना पाक और मुकद्दस होने की मुख्य वजह यह है कि कुरान के मुताबिक पैगंबर साहब को अल्लाह ने अपने पैगंबर के रूप में इसी महीने में चुना था। इसीलिए मुस्लिम समुदाय के प्रत्येक व्यक्ति के लिए रमजान का महीना काफी पवित्र होता है और सभी के लिए रोजे रखना अनिवार्य माना गया है

रमजान का महीना सबसे पवित्र महीना है।

क्योकि इस महीने मे लोग रोजे रखते है कुरआन की तिलावत करते है साथ ही तरावीह पढ़ते है ओर इतना ही नही गरीबो का भी खास ख्याल रखा जाता हे इस पवित्र महीने मे सदका व खैरात बाटते है मुस्लिम समुदाय मे रमजान को विशेष दर्जा दिया गया है इस महीने मे रोजा रखने के बाद जुबान ओर आँखो का भी रोजा होता है झूठ पर पाबंदी के साथ और रोजा अफ्तार के समय लोग एक दस्तर खान लगा कर खाना खाते है ओर रोजा खोलने के बाद अल्लाह से दुआ की जाती हे की अल्लाह सबको खुश रखे और और विशेष तोर पर देश की खुशहाली के लिए भी दुआ की जाती है इतना ही नही कई हिन्दु ओर सीख ओर ईसाई लोग भी रोजा रखते है और इस पवित्र महीने का सभी सम्मान करतें है 29 या 30 रोजे होना चाँद देख कर मनाये जाते है ओर सारे रोजे रखने के बाद फिर ईद मनाई जाती है


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