रुद्रपुर – (एम सलीम खान ब्यूरो) पिछले कई सालों से राजनीतिक दक्ष झेल रहे हैं पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल फिर एक बार अलग थलग पड़ गये है और उनके साथ साथ उनके भाई संजय ठुकराल का उज्जवल भविष्य अंधकारमय हो गया है।
राजकुमार ठुकराल एक अरसे से किसी बड़े राजनीतिक प्लेटफॉर्म की तलाश कर रहे थे, उन्होंने विधानसभा चुनाव में भाजपा से बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधायक का चुनाव लडने का ऐलान कर दिया था और उन्होंने चुनाव लडा भी लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा विधायक शिव अरोरा की चाणक्य नीति से गेम पलट गया।
और ठुकराल चुनाव हार गए, उनके बाद तो उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक शिव अरोरा को बहुत से मोर्चा पर घेरने का भरसक प्रयास किया और विधायक शिव अरोरा ने पलट वार करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी, जिसके बाद ठुकराल ने कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से नजदीकी बढ़ाने का काम शुरू कर दिया।
और आम निकाय चुनावों में रुद्रपुर की बर्चस्व रखने वाली मेयर सीट पर चुनाव लडने का प्लान तैयार किया लेकिन ठीक निकाय चुनावों से पहले उनके एक आडियो ने राजनीतिक माहौल में भूचाल मचा दिया और उसका चौतरफा विरोध शुरू हो गया है जिसके कारण उनके कांग्रेस में शामिल होने के दरवाजों पर पूर्व पालिकाध्यक्ष श्रीमती मीना शर्मा ने ऐसे मजबूत ताले जड़ दिए।
जिन्हें चाहकर भी ठुकराल खोल नहीं सकें, जिसके बाद उन्होंने अपने पूराने संगठन भारतीय जनता पार्टी का रुख अख्तियार किया और ठुकराल देहरादून जा पहुंचे जहां उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आव्हान पर अपना और अपने भाई संजय ठुकराल का मेयर सीट का नामांकन पत्र वापस ले लिया और भाजपा के मेयर उम्मीदवार विकास शर्मा को चुनाव लडने का ऐलान कर दिया।
जैसे ही ठुकराल मेयर उम्मीदवार विकास शर्मा के चुनावी कार्यालय में पहुंचे तो वैसे ही भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष कमल जिंदल एक्शन में आ गए और उन्होंने एक फरमान जारी करते हुए ठुकराल को बंद दरवाजे के पीछे कैद होने का आदेश दे दिया,यह फरमान तुरंत मीडिया ने लगें हाथों लेते हुए पूर्व विधायक राजकुमार ठुकराल के राजनीतिक भविष्य को लेकर जो कुछ कहा और लिखा वह किसी से छुपा नहीं है लेकिन ठुकराल ने अपने साथ साथ अपने भाई संजय ठुकराल का राजनीतिक भविष्य कैद कर दिया।
क्योंकि अगर समाजसेवी संजय ठुकराल मेयर का चुनाव लड़ते तो समीकरण बदल सकते थे और भाजपा और कांग्रेस को उनसे कड़ा मुकाबला करना पड़ सकता था। लेकिन अब ठुकराल करीब एक महीने तक ना कुछ कह सकते और न कुछ कर सकते सिर्फ घर में बैठकर तमाशा देख सकते हैं, ऐसे में वे लोग ठुकराल से सवाल पूछ रहे हैं जो उनके समर्थकों में शुमार है आखिर क्यों उन्होंने नाम वापस ले लिया।