गरीबों पर सख्ती, भूमाफियाओं पर नरमी? ऊधम सिंह नगर प्रशासन की कार्यप्रणाली पर उठे गंभीर सवाल

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रुद्रपुर – (एम सलीम खान संवाददाता) ऊधम सिंह नगर में जिला प्रशासन और संबंधित इकाइयों द्वारा चलाया जा रहा अतिक्रमण हटाने का अभियान अब विवादों के घेरे में आ गया है। दशकों से बसे गरीब परिवारों को नोटिस जारी कर बेघर करने की कार्रवाई तेज़ कर दी गई है, जबकि सरकारी भूमि को स्टाम्प पेपर पर बेचने वाले भूमाफियाओं पर अब तक किसी भी स्तर पर सख्त कदम नहीं उठाए गए हैं। प्रशासन की इस दोहरी नीति को लेकर आमजन में रोष बढ़ता दिखाई दे रहा है।

जानकारी के अनुसार, जिला प्रशासन ने हाल के दिनों में कई परिवारों को जमीन खाली करने के नोटिस जारी किए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे वर्षों से यहां निवास कर रहे हैं, लेकिन अब अचानक बेघर होने की नौबत आ गई है। वहीं दूसरी तरफ, सरकारी भूमि को अवैध तरीके से बेचने वाले भूमाफियाओं के खिलाफ न तो जांच हुई और न ही किसी तरह की कड़ी कार्रवाई देखने को मिली।

स्थानीय लोगों का आरोप है कि मात्र दस रुपये के स्टाम्प पेपर पर लाखों रुपये की सरकारी भूमि बेचने वाले व्यक्तियों पर प्रशासनिक सख्ती नदारद है। वहीं गरीब तबके के लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर उन्हें हटाने की कार्रवाई लगातार जारी है, जिससे प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कई बार स्पष्ट कर चुके हैं कि सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, मगर सरकारी भूमि को बेचने वाले भूमाफियाओं पर कार्रवाई की बात अब तक उनके बयान में नहीं दिखी। लोगों का कहना है कि जब बात गरीब परिवारों की आती है तो प्रशासन तुरंत सक्रिय हो जाता है, लेकिन जब सवाल भूमाफियाओं पर उठता है तो कार्रवाई ठंडी पड़ जाती है।

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हाल ही में करोड़ों की सरकारी भूमि पर एक बड़े निर्माण कार्य का मामला सामने आया। बताया गया कि यह जमीन बड़े नेताओं व कारोबारी समूहों की निगाह में थी। एक आरटीआई कार्यकर्ता की सतर्कता के बाद मामला सामने आया और उच्च न्यायालय ने निर्माण पर रोक लगा दी। इसके अलावा, रुद्रपुर में मौजूद करीब नौ सरकारी तालाब सरकारी दस्तावेजों में दर्ज ही नहीं हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि इन तालाबों पर अवैध कब्जे हो चुके हैं या कुछ प्रभावशाली लोगों ने इन भूमि पर नियंत्रण कर रखा है।

एक अन्य मामले में, काशीपुर रोड स्थित एफसीआई गोदाम के पास सरकारी भूमि पर निर्माण किए जाने की शिकायत सामने आई। जब इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी मांगी तो विकास प्राधिकरण ने जिम्मेदारी नगर निगम पर डाल दी।

कुछ जनप्रतिनिधियों का कहना है कि जिला मुख्यालय में भय का माहौल बनाया जा रहा है और एक विशेष समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है। लोगों का कहना है कि यह संविधान की मूल भावना के विपरीत है और इससे सामाजिक तनाव बढ़ने का खतरा है।

वहीं राजनीतिक मोर्चे पर भी यह मुद्दा गर्मा रहा है। विपक्षी दल कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी कर रही है, लेकिन हाल के अतिक्रमण मामलों में कांग्रेस नेताओं की चुप्पी प्रश्नचिह्न खड़े कर रही है। लोगों का आरोप है कि कांग्रेस लंबे समय से एक समुदाय का वोट बैंक के रूप में उपयोग कर रही है, लेकिन वास्तविक मुद्दों पर नेतृत्व मौन है।

कुल मिलाकर, प्रशासन और सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर जनता में नाराज़गी बढ़ रही है। लोग मांग कर रहे हैं कि भूमाफियाओं पर कठोर कार्रवाई के साथ-साथ गरीब परिवारों की सुरक्षा और वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

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