
कालाढूंगी -(मुस्तज़र फारुकी) मुकद्दस रमजान का तीसरा अशरा शुरू हो गया है। रमजान में तीन अशरे होते हैं। एक अशरे में 10 दिन होते हैं। इस तरह रमजान के 30 दिनों को तीन अशरे में बांटा गया है। एक रमजान से 10 रमजान तक पहला अशरा रहमत का है। इस अशरे में अल्लाह पाक अपने बंदों पर रहमत नाजिल करता है। दूसरा अशरा मगफेरत का है।
यानि गुनाहों से माफी का। ये अशरा 10 रमजान से शुरू होकर 20 रमजान तक है। रमजान के महीने में रहमत के दरवाजे खुल जाते हैं। रोजेदार 20वें रोजे की शाम से ही एतकाफ का अमल शुरू कर देंगे। मस्जिद में एक आदमी एतकाफ में बैठ जाए तो पूरी बस्ती का हक अदा हो जाता है।
अल्लाह उस बस्ती पर आने वाले अजाबों को हटा लेते हैं। रमजान में नबी पाक ने पाबंदी के साथ एतकाफ किया था। इसलिए इस अमल का बहुत ऊंचा दर्जा है। अल्लाह, इंसान के सारे गुनाहों को माफ कर देते हैं और नेकियों में इजाफा होता है। एतकाफ में बैठने वाले को दो हज और एक उमरे का सवाब मिलता है।
मुकद्दस रमजान महीने का तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात दिलाता है। रमजान का पूरा महीना रहमतों का महीना है, लेकिन सबसे अहम है तीसरा अशरा। इसी अशरे की पाक रातों में यानी 21, 23, 25, 27, 29 रमजान की रात पाक कुरान शरीफ नाजिल हुई थी। इन रातों में से जिस रात कुरान शरीफ नाजिल हुई, उसे शब-ए-कद्र की रात कहते हैं। इसलिए इन रातों की अहमियत काफी बढ़ जाती है।
शब-ए-कद्र की रात को हजार महीने की रातों के बराबर बताया गया है, लेकिन वह कौन सी रात है, किस रात को कुरान शरीफ नाजिल हुई, यह ठीक-ठीक मालूम नहीं है। इसलिए रोजेदार इन पांचों रात को जागकर खुदावंद करीम की इबादत करते हैं। रमजान के तीसरे अशरे में ही फितरा और जकात भी निकालते हैं, जिससे ईद की खुशियां गरीब लोग भी मना सकें।

