जिला मुख्यालय रुद्रपुर में चल रहे अवैध निजी अस्पतालों के खिलाफ आखिर क्यों नहीं हो रही है सख्त कार्रवाई?

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रुद्रपुर – जिला मुख्यालय रुद्रपुर में अवैध रूप से संचालित निजी अस्पतालों में कोई न कोई अप्रिय घटना होती रहती है, आएं दिन किसी न किसी मां की गोद उजड़ जातीं या कोई यहां कार्यरत तथा कथित डाक्टरों की लापरवाही का शिकार हो जाता है, शहर में बहुत से निजी अस्पतालों में इलाज इलाज़ के नाम पर स्थानीय लोगों की जेबों पर डाका डाल कर पैसे की लूट खसोट कर रहे हैं,इन निजी अस्पतालों में कार्यरत डाक्टरों को की घौर लापरवाही से कोई न कोई मौत के मुंह में समा जाता है, और यह बे तजुर्बा डाक्टर बड़ी सफाई से अपना पल्ला झाड़ लेते हैं,

 

बीते कुछ सालों से शहर में चल रहे इन अवैध अस्पतालों में बहुत से मासूम बच्चे इन तथाकथित मठाधीशों डाक्टरों की लापरवाही से मौत के मुंह में समा गए हैं,इन सारी बातों का संज्ञान हमारे प्राशसनिक अमले को अच्छी तरह हैं लेकिन प्रशासन इन अवैध अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से हमेशा से मुंह मोडता रहा है, जिले में भारी भरकम स्वास्थ्य महकमे की लंबी चौड़ी फ़ौज है इसके बाद यह तथा कथित अस्पताल जमकर लोगों की जान ले रहे हैं, आपकों बता दें कि शहर की डाक्टर कालौनी में बीते कुछ सालों में कृष्ण अस्पताल के नाम से संचालित निजी अस्पताल में भर्ती कुछ मासूम बच्चों की जान यहां के लापरवाह डाक्टरों वजह बहुत से मासूम बच्चों की मौत हो गई हो चुकी है, वहीं शहर की प्रित बिहार कालोनी में स्थित मर्सी अस्पताल में भी बीते रोज एक नवजात की मौत हो गई, इससे पहले भी इस तथा कथित अस्पताल में एक मौत हो गई थी,उस समय शहर विधायक शिव अरोरा ने इस अस्पताल के विरुद्ध सख्त रवैया अपनाते हुए यह तैनात एक डाक्टर के खिलाफ सख्त एक्शन लेते हुए जिले के आला अफसरों के पेंच कसे थे ओर पुलिस ने इस अस्पताल को सील कर दिया था, इस मामले में एक व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था, लेकिन उसके बाद इस अस्पताल का नाम बदलकर इस पुनः संचालित कर दिया गया और बहुत से बड़े डाक्टरों की नेम प्लेट लगा दी गई, लेकिन इन बड़े डाक्टरों को कभी उक्त अस्पताल में देखा नहीं गया, बताया जा रहा है कि इसरार नामक व्यक्ति इस अस्पताल को संचालित करता है, जिसके पास न तो कोई डिग्री है और न ही कोई तर्जुबा है, यहां अक्सर मासूम बच्चों को गंभीर हालत में लाया जाता है और उन्हें भर्ती कर नये नये सोध किए जाते हैं, स्थानीय लोगों की मानें तो इस अस्पताल में मासूम बच्चों को हैवी दवाईयां देकर उनका इलाज किया जाता है,जिसकी वजह से इन मासूम बच्चों,की मौत हो जाती है,अब सवाल यह है कि जब पहले भी इस तथा कथित अस्पताल में मौत हो चुकी है और उक्त अस्पताल को सील कर दिया गया था तो इस अस्पताल को पुनः कैसे संचालित कर लिया गया, क्या स्वास्थ्य महकमे के बड़े अफसरों की मिली भगत से और मुठ्ठी गर्म कर इसका दोबारा रजिस्ट्रेशन करा लिया गया, आखिर कौन है वो सरकारी अफसर जो चंद पैसे लेकर मासूम बच्चों की जान लेने का प्रमाण पत्र जारी कर रहे हैं, हमारे सिस्टम और सरकार को इस मामले पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है वरना आम आदमी का भरोसा डाक्टरी के पवित्र पेशे से उठ जाएगा, फिलहाल यह बात भी सामने आई है कि मासूम नवजात शिशु के परिजनों ने बच्ची के पोस्टमार्टम से इंकार कर दिया जिसके चलते इस मामले में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की पुलिस सूत्रों का कहना है कि बच्ची की पीएम रिपोर्ट के बाद इस मामले में कार्यवाही संभव थी लेकिन उसके परिजनों ने पोस्टमार्टम से इंकार कर दिया।

एम सलीम खान ब्यूरो


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