तो क्या अमेरिका अरविंद केजरीवाल का समर्थन कर रहा है, और पीएम मोदी की ख़िलाफत
एम सलीम खान ब्यूरो
एन एन आई एफ- भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी ने बीते महीने इंडिया टुडे कान्क्लेव में भारत में सीएए लागूं पर बेहद चिता व्यक्त करते हुए कहा था कि अमेरिका किसी देश से मित्रता के कारण अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकता है,
एरिक ने बीती 15 मार्च को कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है और अमेरिका इसे छोड़ नहीं सकता है, किसी से मित्रता और करीबी के की वजह से हम अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकते हैं, सिद्धांतों के मामले में यह मायने नहीं रखता है कि हमारे संबंध किससे कितने गहरे हैं और किसकी कितनी दुश्मनी है,हम अपने सिद्धांतों के साथ खड़े रहते हैं,, अगर हमारे लोकतंत्र में कुछ गड़बड़ी है तो मैं आपको भी आमंत्रित करता हूं कि आप उसे रेखांकित कीजिए यह कोई एकतरफा मामला नहीं है,,
एरिक के इस बयान को भारत ने खारिज कर था और कहा कि अमेरिका को इस मामले में सही जानकारी नहीं है, भारतीय विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि यह भारत का आतिरिक मामला है और भारत का संविधान सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है,,,
सीएए पर एरिक से उसकी टिप्पणी को लेकर सोमवार को समाचार एजेंसी एन एन आई ने सवाल पूछा तो उन्होंने कहा “किसी भी लोकतंत्र के लिए धार्मिक स्वतंत्रता काफी अहम होती है, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा लोकतंत्र की बुनियादी बात है और यह कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं है,जिस देश में मैं राजदूत हूं वहां क्या हो रहा है, उसकी रिपोर्ट करना मेरा काम है, भारत के राजदूत भी रिपोर्ट करते होंगे,
तो अमेरिका हकीकत में मोदी सरकार के खिलाफ है?
वहीं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिका विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने कहा था “हम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी सहित इन कारवाईयो पर बारीकी से नजर रखना जारी रखेंगे, अमेरिका निष्पक्ष पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रक्रियाओं को अंजाम तक पहुंचाने का समर्थन करता है, और उसे नहीं लगता कि इस पर किसी को कोई आपत्ति होनी चाहिए,,
कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज किए जाने पर मैथ्यू मिलर ने कहा था “हम कांग्रेस पार्टी के आरोपी से भी अवगत हैं कि आयकर विभाग ने उनके कुछ बैंक खातों को फीज कर दिया है, जिससे कि आगामी चुनावों में प्रचार करना उनके लिए चुनौतीपूर्ण हो गया है,हम इनमें से हर मुद्दे के लिए निष्पक्ष पारदर्शी और समय पर कानूनी प्रतिक्रिया को प्रोत्साहित करते हैं,,
भारत ने अमेरिका की इस टिप्पणी पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी
भारत ने अमेरिका की इस टिप्पणी पर भी कड़ी आपत्ति जताई थी और कहा था कि भारत का यह आंतरिक मामला है, अमेरिका की इस टिप्पणियों को कई लोगों ने भारत और मोदी सरकार के विरोध में बताया बहुत से लोगों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि अमेरिका भारत में विपक्ष को समर्थन दे रहा है, और नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहा है,,
माइकल कमलमैन थिक टैंक द किल्सन सेंटर में साऊथ एशिया इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं, उन्होंने 28 मार्च को भारत और अमेरिका के बीच इस विवाद पर लिखा “भारत अमेरिका के बीच केजरीवाल को लेकर जारी विवाद पर आज भारतीय टीवी की एक बाहस में मैं शामिल था,इस बहस में शामिल एक गेस्ट ने आरोप लगाया कि अमेरिका भारत में विपक्ष को समर्थन दे रहा है, मुझे नहीं लगता है कि अमेरिका भारत में विपक्ष या किसी ख़ास पार्टी को समर्थन कर रहा है, लेकिन भारत में अमेरिका को लेकर यह धारणा है कि स्वतंत्रता भू-राजनीतिक पहचान और राष्ट्रवाद में निहित है, अमेरिका रणनीति है कि उभरते भारत को नियंत्रित किया जाएं ताकि वह अपने हितों को सुरक्षित कर सकें,यह अमेरिका की विदेश नीति का स्वाभाविक हिस्सा है,,
अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के बैंक खातों को सीज होने और सीएए पर अमेरिका की टिप्पणी को भारत में कई लोग नरेंद्र मोदी के विरोध में देख रहे हैं लेकिन इसके बरक्स पीएम मोदी की उन टिप्पणियों को भी सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है,जब उन्होंने अमेरिका को लेकर कुछ कहा था,,
*भारत में 1956 में हंगरी 1968 में चेकोस्लोवाकिया और 1979 में अफगानिस्तान पर हमला किया तो भारत ने इसकी निंदा नहीं की थी,2022 में जब यूक्रेन पर रूस ने हमला किया तब भी भारत मे इस हमले की निंदा नहीं की अमेरिका को भारत का यह रवैया कभी रास नहीं आया,,
हंगरी में सोवियत यूनियन के हस्तक्षेप के एक साल बाद 1957 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में बताया था कि भारत ने क्यों इस मामले में यू एस एस आर की निंदा नहीं की,,,
तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था “दुनिया में साल दर साल और दिन ब दिन कई चीजें घटित होती रहती है, जिन्हें हम व्यापक रूप से नापसंद करते हैं, लेकिन हमने इसकी निंदा नहीं की है क्योंकि जब कोई समस्या का समाधान खोज रहा होता है तो उसमें निंदा से कोई मदद नहीं मिलती है,,
भारत का अमेरिका पर अविश्वास सबसे ज्यादा 1971 में बढ़ा,तब पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश पर हमला किया था, चीन और अमेरिका तब पाकिस्तान के साथ थे,,
इसी दौरान भारत की तत्तकालीन प्रधानमंत्री स्व श्रीमती इंदिरा गांधी ने सोवियत यूनियन के साथ फ्रेंडशिप ट्रीटी पर हस्ताक्षर किए था, रिचर्ड निक्सन ने पाकिस्तान के समर्थन में बंगाल की खाड़ी में युद्ध पोत तक भेज दिया था, कहा जाता है कि उस दौरान भारत अमेरिका विरोधी भावना चरम पर थी,,
अमेरिका राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन इंदिरा गांधी को लेकर आपत्ति जनक शब्दों का इस्तेमाल कर चुके थे,शीत युद्ध के दौरान पाकिस्तान खुलकर अमेरिकी गुट था और इसका फायदा उसे अमेरिका को लेकर अविश्वास बढ़ता गया,जो आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।