अपनी बेहतरीन शायरी के लिए हमेशा याद किए जाएंगे मरहूम शायर मुनव्वर राना, करोड़ों दिलों बनाईं है जगह

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मशहूर शायर मुनव्वर राना ने जो लिखा जो कहा कमाल का लिखा। लाखों करोड़ों लोगों के दिलों पर राज करने वाले उर्दू शायर मुनव्वर ऐसे शायर थे जिन्होंने रिश्तों से और संबंधों को गीत ग़ज़ल की जुबान दी, उन्होंने मां पिता बेटा बेटी बहन और दोस्तों पर अनेकों शेर लिखें है, मां पर लिखी गई गजल बहुत ही मशहूर है। रिश्तों पर केन्द्रित गीत ग़ज़लों पर उनका संग्रह मां साल 2015 में प्रकाशित हुआ साहित्य में विशेष योगदान के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया, राना मुशायरो और कवि सम्मेलन की शान हुआ करतें थे आमतौर पर कवि और शायर अपनी रचनाओं में माशुक को समर्पित रचनाएं प्रस्तुत किया करते हैं। लेकिन राना ने अपने शेरो शायरी में रिश्तों को अहम जगह दी थी। मुनव्वर राना का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के राय बरेली में हुआं था। उशका नाम सैय्यद मुनव्वर अली था। जब उन्होंने शायरी की दुनिया में कदम रखा तो उन्होंने किसी एक के लिए बल्कि सभी वर्गों को अपनी शायरी में पिरो दिया। राना की रचना संसार ऐसा हैं जो हमेशा जिंदगी के तमाम मोडो पर किसी न किसी बहाने याद किया जा सकता है। इसके पीछे दो वजह समझ में आती है एक तो उन्होंने रिश्तों एक नया आयाम दिया और उसकी शब्दकोश अपने आप में बडा महत्व रखती है। शायरी के लिए राना की सोच में रिश्तों की गहराई है तो वे बातें भी है जिनसे आदमी का पाला पड़ता रहता है। राना की नस्त यानी गंध किताब सफेद जंगली कबूतर में कुछ दशकों पहले तक मिलीं जुली रिवायतों की प्रति बेशुमार मोहब्बत और गांव की मिट्टी से उनके जुड़ाव को समझा जा सकता है, उन्होंने कहा है चलतीं फिरती आंखों से अजा देखीं है, मैंने जन्नत तो नहीं मां देखी है इस तरह मेरे गुनाह को वो धो देती है, मां बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है। राना की शायरी में बेटी का भी उसी तरह जिक्र है जैसे मां का अपने मुशायरो में भी अपनी बेटी का बहुत प्यार से जिक्र किया उन्होंने कहा उड़ गई आंगन से चिड़िया घर अकेला ही गया, ऐसा लगता है जैसे खत्म मेला हो गया भारत पाकिस्तान बंटवारे के दौरान उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और परिवार के सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद भी मुनव्वर राना के पिता ने अपने देश में रहते का फैसला किया मुनव्वर राना की शुरुआती शिक्षा दीक्षा कोलकाता में हुई। राना ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखा है उनके लेखन की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का उर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। मुनव्वर की अब एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। उन्होंने कहा। कुछ नहीं हो आंचल में छुपा लेगी मुझे, मां कभी सर पे खुली छत नहीं रहने देगी। मेरी ख्वाहिश है कि मैं फिर से फरिश्ता हो जाऊं, मां से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं खुद को इतना समेट लिया है मैंने,कब्र जहां खोदोगे में दफन हो जाऊंगा कसम है तुम्हें तुम इंसाफ करना, मेरे मरने के बाद हिन्दुस्तान की मिट्टी के सुपुर्द ख़ाक करना उनके यह शेर आज भी हिन्दुस्तान के कोने कोने में गूंज रहें।

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संवाददाता-एम सलीम खान


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