जनता के कवि ब्रजमोहन जी का चुनाव पर यह गीत वास्तव में काफी आँखें खोलने वाला है

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एम सलीम खान ब्यूरो

देखो रे सियार देखो

ठग बटमार देखो

कुर्सी की मार देखो

नेताजी का प्यार देखो

देखो आज बस्ती में देखो आज गाँव में

टोपीवाले बगुले आए हैं चुनाव में

आए हैं चुनाव में तो सपने दिखाएँगे

सपने दिखा के फिर दिल्ली उड़ जाएँगे

दिल्ली उड़ जाएँगे तो फिर नहीं आएँगे

नोटों से तैरेंगे वोटों की नाव में …

हर कुर्सी रुपए की भैंस निराली

करती है नोटों की ख़ूब जुगाली

नेता के चेहरे पर रहती है लाली

नेता के जहाज़ उड़े फिर तो हवाओं में …

संसद है गोल, भैया, नेता भी गोल है

ये पैसे वालों का ही एक ठोल है

इसका भी सरकारी नाटक में रोल है

कव्वे बने हैं कैसे कोयल सभाओं में …

ऐ भैया, अब तुम भी सोचो-विचारो

पानी बिना इनको तड़पा के मारो

पाँच साल का रे भूत उतारो

कुछ नहीं रखा है अब काँव-काँव में ..

श्रमिक संगठन से दिनेश चंद्र की कलम से


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